7 Facts : Acharya Vidyasagar Ji Maharaj's Childhood

7 Facts : Acharya Vidyasagar Ji Maharaj's Childhood 


Jai Jinendra!

श्रद्धा के बिना पूजा-पाठ व्यर्थ हैWithout admiration, worship is of no use.-Acharya Vidyasagar Ji Maharaj

About Acharya Shri Vidyasagar Ji Maharaj :-

Acharya Shri Vidyasagarji Maharaj  is one of the best known modern Digambara Jain Acharya . He is known both for his scholarship and tapasya. Despite of being in a modern age, he is known for his hard austerity and long hours in meditation.


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7 Facts About Acharya Vidyasagar Ji Maharaj :- 


 बचपन से ही वे अलग स्वभाव के रहे। लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि वे एक ब्रम्हचर्य का रास्ता अपना लेंगे। और देश दुनिया के लोग उनके आगे नतमस्तक होंगे। विवेचना रंगमंडल के 58 कलाकारों के लाजवाब मंचन में आपने विद्याधर के विद्यासागर बनने की कहानी देखी, लेकिन आचार्य विद्यासागरजी महाराज के जीवन के उन 7 बिंदुओं के बारे में यहां हम आपको बताने जा रहे हैं जो शायद आपको पता होंगे...

- आचार्य विद्यासागर जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946, शरद पूर्णिमा को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सद्लगा ग्राम में हुआ था। उनके पिता मल्लप्पा व मां श्री मति ने उनका नाम विद्याधर रखा। 

- कन्नड़ भाषा में हाईस्कूल तक अध्ययन करने के बाद विद्याधर ने 1967 में आचार्य देशभूषण जी महाराज से ब्रम्हचर्य व्रत ले लिया। इसके बाद जो कठिन साधना का दौर शुरू हुआ तो आचार्यश्री ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।  

- कठिन साधना का मार्ग पार करते हुए आचार्यश्री ने महज 22 वर्ष की उम्र में 30 जून 1968 को अजमेर में आचार्य ज्ञानसागर महाराज से मुनि दीक्षा ली। 




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- गुरुवर ने उन्हें विद्याधर से मुनि विद्यासागर बनाया। 22 नवंबर 1972 को अजमेर में ही आचार्य की उपाधि देकर उन्हें मुनि विद्यासागर से आचार्य विद्यासागर बना दिया।

- आचार्य की उपाधि मिलने के बाद आचार्य विद्यासागर ने देश भर में पदयात्रा की। चातुर्मास, गजरथ महोत्सव के माध्यम से अहिंसा व सद्भाव का संदेश दिया।

- आचार्यश्री संस्कृत व प्राकृत भाषा के साथ हिन्दी, मराठी और कन्नड़ भाषा का भी विशेष ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत में कई रचनाएं भी लिखी हैं। 

- इतना ही नहीं पीएचडी व मास्टर डिग्री के कई शोधार्थियों ने उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीशह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक पर अध्ययन व शोध किया है।          

- कुंडलपुर कमेटी के अध्यक्ष संतोष सिंघई ने बताया कि गृह त्याग के बाद से ठंड, बरसात और गर्मी आचार्यश्री कभी विचलित नहीं हुए। इसी तपोबल और त्याग के कारण सारी दुनिया उनके आगे नतमस्तक है।



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